नौकरी बड़ी हसीन होगी तू ऐ! नौकरी सारे युवा आज तुझ पे ही मरते हैं सुख,चैन छोड़कर चटाई पर सोकर सारी रात जग कर पन्ने पलाटते हैं दिन में तहरी और रात को मैगी आधे पेट खाकर तेरा ही नाम जपते हैं सारे युवा आज तुझ पर ही मरते हैं अनजान शहर में छोटा सस्ता रूम लेकर किचन बैडरूम सब उसी में सहेज कर चाहत में तेरी अपने मां बाप और अपने दोस्तों से दूर रहते हैं सारे युवा आज तुझी पे ही मरते हैं राशन की गठरी अपने सिर पर उठाएं अपनी मायूसीया और मजबूरियां खुद ही छिपाएं खचा-खच भरी ट्रेन में बिना टिकट के रिस्क लेके सफर करते हैं सारे युवा आज तुम पे ही मरते हैं इंटरनेट,अखबारों में तुझको तलाशते हैं तेरे लिए पत्र,पत्रिकाएं पढ़ते-पढ़ते बत्तीस साल तक के जवान आज कुंवारे फिरते हैं तू इतनी हसीन है ऐ! नौकरी सारे युवा आज तुझ पे ही मरते हैं।
घर से दूर रहने वालों को समर्पित घर जाता हूं तो मेरा ही बैग मुझे चिढ़ाता है, मेहमान हूं अब ये मुझे पल-पल बताता है । मां कहती है, समान बैग में अभी डालो, हर बार तुम्हारा कुछ ना कुछ छूट जाता है़। घर पहुंचने से पहले ही लौटने का टिकट, वक्त परिंदों सा उड़ जाता है, उंगलियों पर लेकर जाता हूं गिनती के दिन, फिसलते हुए जाने का दिन पास आ जाता है़। अब कब आओगे सबका पूछना, यह उदास सवाल भीतर तक निखराता है, घर के दरवाजे से निकलने तक, बैंक में कुछ न कुछ भरते जाता हूं। जहां था पास पड़ोस के बच्चे भी वाकिफ, बड़े बुजुर्ग कब आया बेटा पूछते चले जाते हैं, कब तक रहोगे पूछे अनजाने में वो, घाव एक और गहरा कर जाते है़। ट्रेन में मां के हाथों से बनी रोटियां, रोती हुई आंखों में धुधला जाता है़। लौटते वक्त वजनी हुआ बैग, सीट के नीचे पड़े खुद उदास हो जाता है़। तू एक मेहमान है अब ये पल मुझे बताता है । आज भी मेरा घर मुझे वाकही बहुत याद आता है।।